पेड़ों के झुरमुट से झांकती, पत्तों को छानती सुबह की वो पहली किरण। मुर्गों को भी शायद यही किरणें बांग देने को कहती होंगीं। ओस की बूंदें पालक के पत्तों पर रात गुजार अब जाने को हैं। मूली के पौधे ने ओस की बूंदों को अपने मे संजोने की ठान खुद की कड़वाहट खत्म करने का फैसला किया है। पेड़ों पर बंदर सिर्फ उजाले के इंतजार में थे। कहीं दूर हिरनों के झुंड भी अब अपने शावकों को संभाले और जंगली शिकारी की नजरों से बचा लेने का हुनर सिखाते नजर आ रहे हैं। वहीं एक सरकंडों की छत से बने घर से चूल्हा जलाने की महक और उसका धुआँ नजर आने लगा है। किशन (काल्पनिक नाम) भी छोटी सी खुरपी लेकर सरसों और मेथी की क्यारी में काम पर लगा है. किशन की मां ने भगोने में भट्ट की दाल बनने को रख दी है, आज मंडुए की रोटी के साथ किशन को यही मिलेगा जिससे उसकी ऊर्जा पूरे दिन को बनी रहेगी। पास बहती नदी से पानी की खन्न खन्न आवाज हमे बुला रही है की आओ एक बार मेरे इस गांव को अहसास कर जाओ, जहां न शोर है न प्रदूषण है न ट्रैफिक है। सिर्फ प्रकृति है प्रकर्ति है और प्रकर्ति है…..यह “क्यारी” है
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